इस मंडल कमंडल महाभारत में
आदिवासी किस खेत की मूली हैं?
इंसानियत के हक हकूक क्या गाजर मूली हैं?
लो,रस्म अदायगी हो गयी,रंगीन वेषभूषा में नाचा गाना फोटो सेशन सेल्फी!
अब क्या चाहिए जल जंगल जमीन?पुनर्वास?या जिंदगी?
पलाश विश्वास
अछूत भूगोल की काली आबादी को जिन चीजों से वंचिक किया जाना है,उनके लिए एक एक दिवस मना लो तो किस्सा खल्लास।
मानवाधिकार दिवस की पूर्वसंध्या पर हस्तक्षेप के पांच साल पूरे होने पर जो सेमिनार लखनऊ में हुआ,वह लेकिन रस्म अदायगी नहीं है,यकीन मानिये।फेसबुकिया क्रांति हमारा मकसद नहीं है।जमीन जो पक रही है,उसकी खुशबू आपके दिलो दिमाग तक संक्रिमत करने के लिए हम माध्यम और तकनीक,भाषा और विधाओं का इस्तेमाल करते हैं लेकिन यकीन मानिये,हमारी जड़े फिर वही गोबर माटी कीचड़पानी में हैं।
इस देश की सरजमीं औरक उसपर अस्मिताओं के दायरे और बंटवारे के बंदोबस्त के बावजूद जो साझा चूल्हा है,साझे चूल्हे के उस भारत को अमलेंदु,अभिषेक और नागपुर से लेकर यूपी के कोने कोने से आये साथियों और अदब,अमन चैन के बसेरा लखनऊ के नागिरिकों ने संबोधित किया है।
हम बार बार कहते रहे हैं कि हस्तक्षेप तो जन सुनवाई का मंच है जहां मेहनतकश आवाम की हर चीख दर्ज करनी हैं,जो मानवाधिकार और नागरिक अधिकार के मुद्दे हैं तो प्रकृति पर्यावरण मौसम और जलवायु के मुद्दे भी हैं।बाकी लड़ाई जमीन पर है।
अछूत भूगोल की काली आबादी को जिन चीजों से वंचिक किया जाना है,उनके लिए एक एक दिवस मना लो तो किस्सा खल्लास।इसीलिए वैश्विक मनुस्मृति के तमाम संसाधन इंसानियत के तमाम हक हकूक खत्म करते हुए रोज ही कोई न कोई दिवस मनाते रहते हैं,जो बहुत सारे मलाईदार लोगों और लुगाइयों का काम है,धंधा है,आजादी है और सहिष्णुता ,समरसता है।
इस मंडल कमंडल महाभारत में
आदिवासी किस खेत की मूली हैं?
इंसानियत के हक हकूक क्या गाजर मूली हैं?
लो,रस्म अदायगी हो गयी,रंगीन वेषभूषा में नाचा गाना फोटो सेशन सेल्फी!
अब क्या चाहिए जल जंगल जमीन?पुनर्वास?या जिंदगी?
मसलन बाबासाहेब की जयंती मन ही रही थी।
पुण्यतिथि भी मनायी जाती रही है।
दीक्षा दिवस अलग से है और अब संविधान दिवस सरकारी है।
संस्थाओं,संगठनों औरक दलों के लिए एटीएम कोई कम नहीं है।
दिवस मना लो और भूल जाओ समता सामाजिक न्याय के लक्ष्य।
बाबासाहेब को मंदिर में कैद कर दो और खत्म हुआ उनका मिशन।
उनके जाति उन्मूलन का एजंडा और संविधान निर्माताओं का आइडिया आफ इंडिया अब डिजिटल इंडिया है संपूर्ण निजीकरण,संपूर्ण विनिवेश,ज्यादा से ज्यादा छंटनी,बेलगाम बेदखली,बलात्कार सुनामी,कत्लेआम,मुक्त बाजार और विदेशी पूंजी विदेशी हितों का खुल्ला खेल फर्रुखाबादी दसों दिशाओं में,यही समरसता हमारे राजनीतिक,सामाजिक और आर्थिक लक्ष्य हैं।
ताजा किस्सा हम कई दिनों से बांच रहे हैं,सनी लिओन की जो सहिष्णुता का जलवा है और राष्ट्र के विवेक के खिलाफ फतवा है।कुल मिलाकर यही नागरिक और मानवाधिकार है।
राम से बने हनुमान के लंका कांड भी अजब गजब हैं।भीमशक्ति की अभिव्यक्ति बाबासाहेब पर फिल्म है और उसकी हिरोइन भी को ऐरी गैरी नहीं,बहुचर्चित राखी सावंत हैं।
बाबासाहेब पर राखी सावंत का फूल स्पीच हमने साझा किया है और अंबेडकरी आंदोलन और अंबेडकरी मिशन समझने का यह बेहतरीन मौका है।
कम से कम राखी अपना काम कर रही है और सनी लिओन की तरह उनकी भी आजादी हैं।वे सनी की तरह स्त्री भी हैं।जो पितृसत्ता की शिकार हैं।दोनों बहरहाल उसीतरह मानवाधिकार के आइकन हैं जैसे हमारे कैलास सत्यार्थी हैं और पाकिस्तान में मलाला।
ड्रोन हमलों पर मलाला जैसे बोल नहीं सकतीं,सुधार अश्वमेध पर सत्यार्थी का रामवाम वैदिकी मंत्र हैं।
इनसे और इनके जैसे महामहिम मसीहा तबके के आदरणीय सत्ता वर्ग के मुकाबले हालात से जूझकर अपनीमेहनत की कमाई का रही सनी लिओन और राखी सावंत बहुत बेहतर हैं और वे बेहतर है धर्म कर्म सियासती मजहब और मजहबी सियासत के कातिल जमात से जिसमें ये हरगिज शामिल नहीं हैं।
न वे मुहब्त का कत्ल करके नफरत की बलात्कार सुनामियां,तमाम तरह की आपदाएं,आफसा और सलवाजुड़ुम की जिम्मेदार हैं।
सत्ता तबके ने उनकी भूमिकाएं तय कर दी हैं और अपनी भूमिकाओं के तहत ही वे जलवे बिखेर रही हैं।यह स्त्री की नियति है और यही पितृसत्ता है कि स्त्री उसके हाथों कठरपुतली है।
उनके लिए नागरिक अधिकार और मानवाधिकार और स्वतंत्रता और सहिष्णुता के मायने भी यही मनुस्मृति पितृसत्ता तय करती है तो अपना वजूद कायम रखने के लिए वही संवाद उन्हें बोलने होते हैं जो स्क्रिप्ट में लिखा है और हम पूरी फिल्म और उसके निर्देशक और निर्माता की चीरफाड़ कर रहे हैं,जो संजोग से नागपुर में रचे बसे हैं।फिर दिल्ली में उन्हींकी सत्ता है। वे इतिहास भूगोल बदले रहे हैं तो बड़ों बड़ों के संवाद बदल रहे हैं और बड़े बड़े सन्नाटा बुन रहे हैं।सारे संवाद उन्हीं के हैं और सारे किरदार भी उन्हींके।बाकी सारे किरदार अदाकार खारिज हैं।राष्ट्रविरोधी हिंदूविरोधी हैं।
स्वतंत्रता,संप्रभुता,गणतंत्र,प्रगति,विकास,समता सामाजिक न्याय,देश,देशभक्ति,सणुता,नागरिक और मानवाधिकार अधिकार सबकुछ उनकी परिभाभाषाएं और उनका ही सौंदर्यबोध।
किसी के हाथ बूम थमाकर,तेज रोशनी की चकाचौंध में उसे कुछ भी कहलवा लो,जमीर की खातिर न सही,वजूद और दंधे के खातिर उसे वहीं कुछ कहना बोलना है जो स्क्रिप्ट में लिखा बिग बास का सेक्सी तमाशा है।
पोल डांस है।गर्म मसाला वीडियो हैं।
जो हुक्म उदूली करें,उनका गरदन काट दें।
जो बन जायें इस सहिष्णुता समरसता के ब्रांड एंबेसैडेर,जो कहें कानून का राज है,समता है,न्याय है,सबकुछ ठीकठाक हैं,उनके लिए बी सबकुछ बरोबर,काम धंधे की इजाजत है वरना फिर चंटनी है,तड़ीपार है,फतवा है और आखेर गांधी,पनसारे,दाबोलकर कलबुर्गी दवा है,क्योंकि राजकाज नाथुराम गोडसे हैं और संसद में संसद से बाहर यही लोकतंत्र है कि देश बेच डालने की सरेबाजार इजाजत है।
सरकार एफडीआई है तो देश अमेरिकी उपनिवेश है और उसीके मुताबिक सलवा जुड़ुम आफसा,मंडल कमंडल गृहजुध,हिंदुस्तान पाकिस्तान नकली युद्ध,बारत चीन छायायुद्ध और आतंक के सफाये के बहाने मानवादिकार नागरिक अधिकार बहाली का तेल युद्ध है।
असली युद्ध जनता के खिलाफो है।जिसमें मारने वाले भी वे ही लोग है जो मारे जाने वाले हैं।जिसमें बलात्कार की शिकार तमाम औरतें जो या तो शूद्र हैं या दासी या पिर सेक्स स्लेव।
बाकी सबकुछ मनुस्मृति का बिजनेसफ्रेंडली राजकाज है।
तारीफ करनी होगी कि दिलफरेब जलवा के बावजूद न सनी लिओन और न राखी सावंत का बिजनेस और काम करने की आजादी और सहिष्णुता से लेना देना कुछ भी नहीं है।
वे मेहनत की कमाई खा रही हैं और हमारे लोकतंत्र के रथी महारथियों की तरह हराम खोर नहीं हैं और न किसी विचारधारा के एटीएम पर उनका कब्जा है और न वे मसीहावृंद में शामिल हैं।
मीडिया और राजनीति उन्हें अपना प्रवक्ता बतौर पेश कर रही हैं और उनके धंधे का तकाजा है कि वे ना भी नहीं कर सकती।वैसे ही जैसे बंगाल में भूख चांद की तरह झुलसी हुई कविता का अब कोई वजूद नहीं है और सारे भूषण विभूषण आमार माथा नतो करे देओ हे तोमार चरणधुलिर तले वृंदगान में गा बोल नाच लिख रच रहे हैं।
दोनों महिलाओं से हमें कोई एलर्जी नहीं हैं।उनके जलवे पहले से ही राजनीतिक आर्थिक परिदृश्य पर भारी हैं और हम माध्यम में उपलब्ध हैं और हम तो सिर्फ इस घनघोर सहिष्णु माहौल को साफ करने खातिर उनका जलवा भी शेयर कर रहे हैं।
नहीं समझें,तो सलवा जुड़ुम का नजारा देख लीजिये।बंगाल में जंगल महल में आदिवासियों की मुस्कान देख लीजिये।गणतंत्र दिवस की झांकियों में आदिवासी रंग बिरंगे देख लीजिये।उनके उत्सव और उनके नृत्यदेख लीजिये।
यही सहिष्णुता है कि कम से कम लातिन अमेरिका,उत्तरी अमेरिका,अफ्रीका और आस्ट्रेलिया न्यूजीलैंड की तरह हमारे हिंदू राष्ट्र में उनका सफाया हुआ नहीं है और सनी लियोन के बिजनेस और काम की स्वतंत्रता जैसे स्त्री मुक्ति की झांकियां हैं,वैसे ही रंग बिरंगे आदिवासी चेहरे बतलाते हैं कि कैसे वे सही सलामत हैं और इंसानियत के सारे हकहकूक बहाल है।
पूरी दुनिया को तेल कुंओं की आग में झुलसाकर उसकी बोटी बोटी चबाने वाले ग्लोबल आर्डर की सहिष्णुता भी यही है।
मास डेस्ट्रक्शन के वीपनवा को खतम करने के लिए,लातिन अमेरिका में साम्यवादी बगावत के दमन के लिए,पूर्वी यूरोप में तानाशाही के खत्म के लिए,वियतनाम कंपूचिया में चीनी हस्तक्षेप खत्म करने के लिए जो युद्ध का इतिहास है,वह कोलबंस और कप्तान कुक के आदिवासी सफाया अभियान से दो दस कदम आगे हैं।
हिंदुस्तान में भी अब कोलंबस,कुक और वास्कोडिगामा कम नहीं हैं और जमीन के हर चप्पे पर मंडल कमंडल युद्ध है तो बेदखली के चाकचौबंद इंतजामात हैं।
इस मंडल कमंडल महाभारत में
आदिवासी किस खेत की मूली हैं?
इंसानियत के हक हकूक क्या गाजर मूली हैं?
लो,रस्म अदायगी हो गयी,रंगीन वेषभूषा में नाचा गाना फोटो सेशन सेल्फी!
अब क्या चाहिए जल जंगल जमीन?पुनर्वास?या जिंदगी?
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