Rajiv Nayan Bahuguna Bahuguna
कुछ मित्र मुझे निरन्तर उलाहना दे रहे हैं कि मैं मुस्लिम महिलाओं के हिज़ाब प्रकरण पर क्यों चुप हूँ , जबकि हिन्दू रीति रिवाजों पर आये दिन झींकता रहता हूँ । मेरा उत्तर है - ठीक उसी तरह चुप हूँ , जैसे कि किसी मित्र की गर्दन में दर्द होने पर दवा मुझे नहीं , बल्कि उसी को खानी होती हैं । पहली बात यह कि मैं महिला नहीं हूँ । और आखिरी बात यह की मैं मुस्लिम नहीं हूँ ।मैं तो यह भी तय नहीं कर सकता कि उसे दर्द है भी , या नहीं । " अंधा बांटे रेवड़ी , अपनों को ही दे । " मेरे पास व्यंग्य , उपहास और कटाक्ष की जो कड़वी रेवड़ी है , वह उन्हीं धर्मालम्बियों के लिए हैं , जिससे मेरा नाता है । बच जायेगी , तभी औरों को दूंगा ।
ऐसे भी मुझे इस्लाम की मान्यताओं और परम्पराओं का न्यूनतम ज्ञान है । उन पर कोई टीप करने से पहले मुझे इस्लाम पढ़ना पड़ेगा । और इस्लाम पढ़ने के बाद हो सकता है कि मैं मुसलमान हो जाऊं । क्या मेरे धर्म बन्धु ऐसा चाहेंगे ? क्योंकि शंकराचार्य को भी मण्डन मिश्र की भार्या के रति सम्बन्धी प्रश्न का उत्तर देने के लिए सद्यह मृत व्यक्ति की देह में दाखिल हो उसकी बीबी के साथ सोना पड़ा था । एक और तोगड़िया जी की चिंता है कि मुसलमानों की संख्या बढ़ रही है । ऐसे में वह भी क्योंकर मुझे मुसलमान होने देना चाहेंगे ।
( चित्र सौजन्य - मित्र निलेश )
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