पलंग पीठ तजि गौद हिडोरा सिय न दीन पग अवनि कठोरा
अर्थ : सीता जी युवावस्था में ही घुटनों के दर्द से लाचार थीं अतः पलंग पर या कुर्सी पर बैठी रह्ती थीं कौशल्या जी उन्हें गौद में उठा कर झूले पर बैठाया करती थीं. राम ने भरत से सुनहु भरत भावी प्रबल कहते हुए उनके जिद्दी स्वभाव के कारण अयोध्या लौटने मॆं अपनी असमर्थता व्यक्त की थी (एक छात्र की उत्तर पुस्तिका से साभार )
বাঙালির সম্পূর্ণ ভূগোল,ইতিহাস,সংস্কৃতি,সাহিত্য, শিল্প,অর্থ,বাণিজ্য,বিশ্বায়ণ,রুখে দাঁড়াবার জেদ, বৌদ্ধময় ঐতিহ্য, অন্ত্যজ ব্রাত্য বহিস্কৃত শরণার্থী জীবন যাপনকে আত্মপরিচয়,চেতনা,মাতৃভাষাকে রাজনৈতিক সীমানা ডিঙিয়ে আবিস্কার করার প্রচেষ্টা এই ব্লগ,আপনার লেখাও চাই কিন্তু,যে স্বজনদের সঙ্গে যোগাযাগ নেই,তাঁদের খোঁজে এই বাস্তুহারা তত্পরতা,যেখবর মীডিয়া ছাপে না, যারা ক্ষমতার, আধিপাত্যের বলি প্রতিনিয়তই,সেই খবর,লেখা পাঠান,খবর দিন এখনই এই ঠিকানায়ঃpalashbiswaskl@gmail.com
Friday, December 18, 2015
पलंग पीठ तजि गौद हिडोरा सिय न दीन पग अवनि कठोरा अर्थ : सीता जी युवावस्था में ही घुटनों के दर्द से लाचार थीं अतः पलंग पर या कुर्सी पर बैठी रह्ती थीं कौशल्या जी उन्हें गौद में उठा कर झूले पर बैठाया करती थीं. राम ने भरत से सुनहु भरत भावी प्रबल कहते हुए उनके जिद्दी स्वभाव के कारण अयोध्या लौटने मॆं अपनी असमर्थता व्यक्त की थी (एक छात्र की उत्तर पुस्तिका से साभार )
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