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বাঙালির সম্পূর্ণ ভূগোল,ইতিহাস,সংস্কৃতি,সাহিত্য, শিল্প,অর্থ,বাণিজ্য,বিশ্বায়ণ,রুখে দাঁড়াবার জেদ, বৌদ্ধময় ঐতিহ্য, অন্ত্যজ ব্রাত্য বহিস্কৃত শরণার্থী জীবন যাপনকে আত্মপরিচয়,চেতনা,মাতৃভাষাকে রাজনৈতিক সীমানা ডিঙিয়ে আবিস্কার করার প্রচেষ্টা এই ব্লগ,আপনার লেখাও চাই কিন্তু,যে স্বজনদের সঙ্গে যোগাযাগ নেই,তাঁদের খোঁজে এই বাস্তুহারা তত্পরতা,যেখবর মীডিয়া ছাপে না, যারা ক্ষমতার, আধিপাত্যের বলি প্রতিনিয়তই,সেই খবর,লেখা পাঠান,খবর দিন এখনই এই ঠিকানায়ঃpalashbiswaskl@gmail.com
दो साल पहले 58 की उम्र मैं भी संपादक पद से मुक्त हो गया था। मैने कार्यकारी संपादक पद से अवकाश ग्रहण किया और कभी भी कारपोरेट संपादक नहीं बन पाया। शायद इसके लिए जो समझौते और काइंयापन चाहिए था वह मुझमें नहीं आ पाया। इतने संपादकों के साथ काम किया पर मुझे आज तक कोई संपादक ऐसा नहीं दिखा जिसने अपने सहकर्मियों के साथ मानवीय व्यवहार किया हो। अंग्रेजी में भी जार्ज वर्गीज के अलावा किसी भी अन्य संपादक के बारे में नहीं सुना कि वे अपने अधीनस्थों के साथ तमीज से पेश आते रहे। भले वे आपको दारू साथ बैठ कर पी लें मगर अपना लैपटॉप अपने अधीनस्थ से ही उठवाते थे। और हर वक्त भाई साहब कहलवाना पसंद करते थे। और जो लोग खुद को यूनियनबाज और राजनेताओं का करीबी बताते हैं उनके बारे में भी संपादक कहता था कि वह साला कहां मर गया नौटंकीबाज। नंबर दो पर रहने के यही तो मजे हैं कि आप सबकी पोल जानते हैं। अब फेसबुक पर चाहे जितनी बहादुरी दिखा लो।
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